अपडेटेड 10 March 2025 at 17:13 IST

महाकुंभ में स्नान के लिए उपयुक्त था गंगा जल: सरकार ने लोकसभा में कहा

डीओ पानी में ऑक्सीजन की मात्रा को दर्शाता है, बीओडी कार्बनिक पदार्थों को तोड़ने के लिए आवश्यक ऑक्सीजन को मापता है, वहीं एफसी जलमल का सूचक है।

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महाकुंभ के जल पर सरकार ने लोकसभा में जवाब दिया. | Image: Sansad TV

केंद्र सरकार ने सोमवार को लोकसभा में केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड (सीपीसीबी) की एक नयी रिपोर्ट का हवाला दिया और कहा कि हाल में संपन्न महाकुंभ के दौरान प्रयागराज में त्रिवेणी संगम पर गंगा का पानी स्नान के लिए उपयुक्त था। सरकार ने यह भी कहा कि उसने 2022-23, 2023-24 और 2024-25 (9 मार्च तक) में गंगा की सफाई के लिए राष्ट्रीय स्वच्छ गंगा मिशन (एनएमसीजी) को कुल 7,421 करोड़ रुपये प्रदान किए हैं।

समाजवादी पार्टी के सांसद आनंद भदौरिया और कांग्रेस सांसद के. सुधाकरन के प्रश्न के लिखित जवाब में केंद्रीय पर्यावरण मंत्री भूपेंद्र यादव ने कहा कि सीपीसीबी की रिपोर्ट के अनुसार, निगरानी वाले सभी स्थानों पर पीएच , घुलित ऑक्सीजन (डीओ), जैव रासायनिक ऑक्सीजन मांग (बीओडी) और फीकल कॉलीफॉर्म (एफसी) के औसत मान स्नान के लिए स्वीकार्य सीमा के भीतर थे।

डीओ पानी में ऑक्सीजन की मात्रा को दर्शाता है, बीओडी कार्बनिक पदार्थों को तोड़ने के लिए आवश्यक ऑक्सीजन को मापता है, वहीं एफसी जलमल का सूचक है। ये जल गुणवत्ता के प्रमुख संकेतक हैं। सीपीसीबी ने 3 फरवरी की एक रिपोर्ट में राष्ट्रीय हरित अधिकरण (एनजीटी) को सूचित किया था कि महाकुंभ के दौरान प्रयागराज में कई स्थानों पर पानी उच्च फीकल कॉलीफॉर्म स्तर के कारण प्राथमिक स्नान जल गुणवत्ता मानक को पूरा नहीं करता। हालांकि, 28 फरवरी को एनजीटी को सौंपी गई एक नई रिपोर्ट में सीपीसीबी ने कहा कि सांख्यिकीय विश्लेषण बताता है कि महाकुंभ में पानी की गुणवत्ता स्नान के लिए उपयुक्त थी।

सीपीसीबी की रिपोर्ट में क्या कहा गया?

सीपीसीबी की रिपोर्ट में कहा गया है कि सांख्यिकीय विश्लेषण इसलिए आवश्यक था क्योंकि एक ही स्थान से अलग-अलग तिथियों और एक ही दिन में अलग-अलग स्थानों से एकत्र किए गए नमूनों में ‘‘आंकड़ों की भिन्नता’’ थी, जिसके कारण ये ‘‘नदी क्षेत्र में समग्र नदी जल की गुणवत्ता’’ को प्रतिबिंबित नहीं करते थे। बोर्ड की 28 फरवरी की तारीख वाली इस रिपोर्ट को सात मार्च को एनजीटी की वेबसाइट पर अपलोड किया गया। बोर्ड ने 12 जनवरी से लेकर अब तक प्रति सप्ताह दो बार, जिसमें अमृत स्नान के दिन भी शामिल हैं, गंगा नदी पर पांच स्थानों तथा यमुना नदी पर दो स्थानों पर जल गुणवत्ता पर निगरानी रखी।

एनजीटी ने 23 दिसंबर 2024 को दिया था निर्देश

‘कमलेश सिंह बनाम उत्तर प्रदेश राज्य एवं अन्य’ के मामले में एनजीटी ने 23 दिसंबर, 2024 को निर्देश दिया था कि गंगा और यमुना के जल की गुणवत्ता पर महाकुंभ के दौरान बार-बार नियमित निगरानी रखी जानी चाहिए। भूपेंद्र यादव ने कहा कि इस आदेश पर सीपीसीबी ने संगम नोज (जहां गंगा और यमुना का मिलन होता है) सहित श्रृंगवेरपुर घाट से दीहाघाट तक सात स्थानों पर सप्ताह में दो बार जल गुणवत्ता की निगरानी की। उन्होंने कहा कि निगरानी 12 जनवरी को शुरू हुई और इसमें अमृत स्नान के दिन शामिल थे। भूपेंद्र यादव ने कहा कि सीपीसीबी ने 3 फरवरी को एनजीटी को अपनी प्रारंभिक निगरानी रिपोर्ट सौंपी, जिसमें 12 से 26 जनवरी, 2025 के बीच एकत्र जल गुणवत्ता के आंकड़े शामिल थे।

रिपोर्ट में 10 जलमल शोधन संयंत्र के आंकड़े थे शामिल

रिपोर्ट में प्रयागराज में स्थापित 10 जलमल शोधन संयंत्र (एसटीपी) और सात ‘जियोसिंथेटिक डीवाटरिंग ट्यूब’ (जियो-ट्यूब) के आंकड़े भी शामिल हैं। बाद में, सीपीसीबी ने निगरानी स्थानों की संख्या बढ़ाकर 10 कर दी और 21 फरवरी से प्रतिदिन दो बार परीक्षण शुरू किया। भूपेंद्र यादव ने कहा कि उत्तर प्रदेश जल निगम ने अपशिष्ट जल के उपचार और अनुपचारित पानी को गंगा में जाने से रोकने के लिए उन्नत ऑक्सीकरण तकनीकों का इस्तेमाल किया।

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Published By : Dalchand Kumar

पब्लिश्ड 10 March 2025 at 17:13 IST