अपडेटेड 21 February 2024 at 13:07 IST
कौन थे फली एस नरीमन, जिन्होंने इंदिरा सरकार का किया था विरोध, ऑर्टिकल 370 पर कही थी बड़ी बात
फली एस नरीमन ने 1950 में बॉम्बे हाईकोर्ट से अपने करियर की शुरुआत की थी। 1961 में वो सीनियर एडवोकेट चुने गए थे। 70 साल का उनका लंबा करियर था।
Fali s Nariman Passes away: सुप्रीम कोर्ट के दिग्गज वकील फली एस नरीमन का निधन हो गया। 95 साल की उम्र में उन्होंने आखिरी सांस ली। फली एस नरीमन ने प्रसिद्ध एनजेएसी फैसले सहित कई ऐतिहासिक मामलों पर बहस की है। नरीमन की उस समय पूरे देश में चर्चा हुई थी जब उन्होंने इंदिरा गांधी के एक फैसले के खिलाफ अतिरिक्त सॉलिसिटर जनरल पद से इस्तीफा दिया था।
फली एस नरीमन ने 1950 में बॉम्बे हाईकोर्ट से अपने करियर की शुरुआत की थी। 1961 में वो सीनियर एडवोकेट चुने गए थे। 70 साल का उनका लंबा करियर था। उन्होंने 1972 में सुप्रीम कोर्ट में वकालत शुरू की। इसके बाद उन्हें भारत का अतिरिक्त सॉलिसिटर जनरल नियुक्त किया गया। सेंट जेवियर्स कॉलेज, मुंबई से स्नातक नरीमन ने महत्वपूर्ण मामलों को संभालकर कानूनी मामलों में उल्लेखनीय छाप छोड़ी।
फली एस नरीमन सुप्रीम कोर्ट के इस फैसले का किया था विरोध
फली एस नरीमन को न केवल सुप्रीम कोर्ट के सीनियर वकील के तौर पर जाना जाता था बल्कि वो लोगों की आवाज थे। वो नागरिक स्वतंत्रता के कट्टर समर्थक थे। नरीमन ने अनुच्छेद 370 (Article 370) में सुप्रीम कोर्ट के फैसले की भी आलोचना की थी। जून 1975 में उन्होंने इंदिरा सरकार के फैसले का विरोध करने के लिए भारत के अतिरिक्त सॉलिसिटर जनरल पद से इस्तीफा दे दिया था।
पद्म भूषण से लेकर पद्म विभूषण तक का सम्मान
एस नरीमन 1991 से लेकर 1991 तक बार एसोसिएशन ऑफ इंडिया के अध्यक्ष के रूप में काम किया गया था। उन्होंने मई 1972 से जून 1975 तक भारत के अतिरिक्त सॉलिसिटर जनरल से लेकर कई महत्वपूर्ण पदों पर अपना योगदान दिया। नरीमन को उनके उत्कृष्ठ काम के लिए जनवरी 1991 में पद्म भूषण और 2007 में पद्म विभूषण से सम्मानित किया गया था। उन्होंने जून 1975 में पूर्व पीएम इंदिरा गांधी सरकार फैसले के खिलाफ एडिशन सॉलिलिटर जनरल पद से इस्तीफा दे दिया था।
बार एसोसिएशन ऑफ इंडिया के अध्यक्ष की निभाई थी भूमिका
एस नरीमन बार एसोसिएशन ऑफ इंडिया के अध्यक्ष के एक ऐसे नेता के रूप में जाने जाते थे जिन्होंने उभरते लोकतंत्रों के आधुनिक युग में कानून के सार्वभौमिक शासन को बढ़ावा दिया। उन्होंने न्यायशास्त्र की प्रणालियों में परिवर्तनकारी उपलब्धियां हासिल कीं। उन्होंने भारत में कानूनों को स्थापित करने और लागू करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। मुद्दों पर कड़ा रुख अपनाने के लिए जाने जाने वाले नरीमन ने 1972 में नई दिल्ली आने के बाद भारत के सर्वोच्च न्यायालय में व्यापक रूप से वकालत की।
Published By : Rupam Kumari
पब्लिश्ड 21 February 2024 at 13:03 IST