अपडेटेड 21 May 2025 at 15:09 IST
2KM दूर से सूंघ सकता है... कितना खतरनाक होता है 'इंडियन ग्रे वुल्फ'? जिसके 8 दशक बाद दिल्ली में देखे जाने का किया जा रहा दावा
दिल्ली का पल्ला क्षेत्र, जो यमुना के किनारे फैले बायोडायवर्सिटी ज़ोन के करीब है, अब वन्यजीव विशेषज्ञों और संरक्षण संस्थानों के लिए अध्ययन का केंद्र बन चुका है। कई पर्यावरणविद् और जीव विज्ञानियों की टीमें इस क्षेत्र का दौरा करने की योजना बना रही हैं ताकि 'ग्रे-वुल्फ' की उपस्थिति की पुष्टि की जा सके।
Grey Wofl Spotted in Delhi: दिल्ली के वन्यजीव प्रेमियों और विशेषज्ञों के लिए एक रोमांचक खबर सामने आई है। राजधानी के पल्ला क्षेत्र में एक वाइल्डलाइफ़ फ़ोटोग्राफ़र ने हाल ही में एक दुर्लभ वन्य जीव की तस्वीर खींची है, जिसे देखकर वन्यजीव विशेषज्ञों में उत्साह की लहर दौड़ गई है। दावा किया जा रहा है कि तस्वीर में नजर आ रहा जीव कोई और नहीं बल्कि भारतीय ग्रे वुल्फ (Canis lupus pallipes) है। ग्रे-वुल्फ एक ऐसा जीव जिसे अंतिम बार 1940 में दिल्ली में देखा गया था। इस तस्वीर के वायरल होते ही वन्यजीव विशेषज्ञों की टीमें सतर्क हो गई हैं। वाइल्डलाइफ इंस्टिट्यूट ऑफ इंडिया के वरिष्ठ वैज्ञानिक डॉ. बिलाल हबीब ने इस तस्वीर को देखा और ध्यान पूर्वक इसकी जांच के बाद मीडिया को बताया कि 'यह जानवर भारतीय ग्रे वुल्फ ही लगता है। यदि यह पुष्टि होती है, तो यह बहुत बड़ी खोज होगी।'
इंडियन 'ग्रे-वुल्फ' को देश में पहले ही संकटग्रस्त प्रजातियों (विलुप्त हो रही प्रजाति के जानवरों) की सूची में रखा गया है। आमतौर पर यह मध्य भारत, राजस्थान और कुछ दक्षिणी राज्यों में देखा जाता है, लेकिन शहरी फैलाव और पारिस्थितिक बदलावों के कारण यह प्रजाति अब बहुत कम हो गई है। पल्ला क्षेत्र, जो यमुना के किनारे फैले बायोडायवर्सिटी ज़ोन के करीब है, अब वन्यजीव विशेषज्ञों और संरक्षण संस्थानों के लिए अध्ययन का केंद्र बन चुका है। कई पर्यावरणविद् और जीव विज्ञानियों की टीमें इस क्षेत्र का दौरा करने की योजना बना रही हैं ताकि 'ग्रे-वुल्फ' की उपस्थिति की पुष्टि की जा सके और यह पता लगाया जा सके कि क्या यह इलाका उनके लिए स्थायी आवास बन सकता है। अगर यह दावा प्रमाणित होता है, तो न केवल यह दिल्ली के जैव-विविधता परिदृश्य को समृद्ध करेगा, बल्कि यह एक मजबूत संकेत होगा कि कुछ संकटग्रस्त प्रजातियां अब शहरी सीमाओं में भी वापसी कर रही हैं।
15 मई की सुबह पहली बार दिखा ग्रे-वुल्फ!
फोटोग्राफर हेमंत गर्ग का अनुभव: ‘यह कुत्ते जैसा नहीं था’ हेमंत गर्ग, जो पिछले कुछ वर्षों से पल्ला क्षेत्र में वन्य जीवों की तस्वीरें ले रहे हैं, ने बताया कि 15 मई की सुबह करीब 8 बजे उन्होंने इस जानवर को पहली बार देखा। गर्ग ने बताया, 'यह खेतों के बीच दिखाई दिया। इसका चलने का तरीका कुत्तों से बिलकुल अलग था। छाती और कंधे बेहद मजबूत थे, और यह जिस तरह ज़मीन खोद रहा था, वह भी कुत्तों से भिन्न था'। उन्होंने कहा, 'मैंने इसकी दो तस्वीरें लीं। फिर यह झाड़ियों में ओझल हो गया। तस्वीरें कुछ विशेषज्ञों को भेजीं तो उन्होंने कहा कि यह भारतीय ग्रे वुल्फ हो सकता है।'
विशेषज्ञों की राय: वुल्फ या हाइब्रिड?
वन्यजीव वैज्ञानिक डॉ. बिलाल हबीब, जो भारतीय ग्रे वुल्फ पर विशेष शोध कर चुके हैं, का मानना है कि यह जीव संभवतः ग्रे वुल्फ ही है। उन्होंने कहा कि इसकी उम्र करीब एक साल के आसपास लगती है और यह अपनी प्राकृतिक जगह से विस्थापित जान पड़ता है। हालांकि पर्यावरणविद् डॉ. फैयाज ए खुदसर इस निष्कर्ष से पूरी तरह सहमत नहीं हैं। उनका मानना है कि यह जीव एक संभावित हाइब्रिड भी हो सकता है। यानी कुत्ते और भेड़िए का संकर रूप। डॉ. खुदसर ने बताया, 'ग्रामीण और शहरी क्षेत्रों की सीमाओं पर अक्सर कुत्ते और भेड़िए आपस में संकरण करते हैं। पिछले वर्ष चंबल के पास भी ऐसा ही एक जीव देखा गया था। दिल्ली जैसे इलाकों में, जहां कुत्तों की आबादी तेजी से बढ़ रही है और वनक्षेत्र सिमट रहे हैं, वहां इस तरह के हाइब्रिड्स की संभावना काफी अधिक है।'
इंडियन ग्रे-वुल्फ के लक्षण
- भारतीय भूरे रंग का भेड़िया घास के मैदानों और झाड़ियों वाले सूखे इलाकों में रहता है
- इस प्रजाति के भेड़िए अक्सर किसानों के आस-पास ही रहते हैं क्यों इनका मुख्य शिकार बकरियां, खरगोश और चूहे होते हैं
- इस प्रजाति के भेड़िए दूसरे भेड़ियों की तुलना में कम चिल्लाते हैं ये चुपके से अपने शिकार को लेकर भागते हैं
- इस प्रजाति के भेड़ियों की सूंघने की क्षमता बहुत दुर्लभ होती है और ये अपने शिकार को 2 किलोमीटर की दूरी से भी सूंघ सकते हैं
- इस प्रजाति के भेड़िए पेड़ों पर चढ़ने में भी माहिर होते हैं ये अपने शिकार को पेड़ पर भी चढ़कर कर सकते हैं
- ये भेड़िए बहुत ही सामाजिक प्रजाति के होते हैं और झुंड में रहना पसंद करते हैं
- देखने में तो ये यूरेशियन भेड़ियों की तरह ही दिखाई देते हैं लेकिन ये उससे छोटे और पतले होते हैं
- इस प्रजाति के नर भेड़ियों का वजन लगभग 20 से 25 किलोग्राम तक और मादा भेड़ियों का वजन लगभग 18 से 22 किलोग्राम तक होता है
विशेषज्ञ करेंगे जांच और ट्रैकिंग
अब विशेषज्ञों की टीम इस क्षेत्र में विस्तृत सर्वेक्षण और ट्रैकिंग की योजना बना रही है ताकि यह पता लगाया जा सके कि यह जीव वास्तव में भारतीय ग्रे वुल्फ है या एक नया संकरण। यदि यह वाकई ग्रे वुल्फ है, तो यह दिल्ली की जैव विविधता के लिए ऐतिहासिक क्षण होगा। वहीं अगर यह हाइब्रिड है, तो यह एक नई पारिस्थितिक चुनौती के संकेत भी हो सकते हैं, जो शहरीकरण और आवासीय विस्तार से जुड़ी हैं। भले ही यह रहस्यमयी जीव वुल्फ हो या उसका हाइब्रिड रूप, लेकिन यह घटना निश्चित रूप से हमारे पर्यावरण, वन्य जीवन और जैव विविधता के संरक्षण की दिशा में एक बार फिर ध्यान आकर्षित करती है।
Published By : Ravindra Singh
पब्लिश्ड 21 May 2025 at 15:08 IST