अपडेटेड 24 February 2025 at 21:21 IST
'शारीरिक संबंध का मतलब...', दिल्ली HC ने नाबालिग से दुष्कर्म के दोषी को किया बरी
दिल्ली HC ने नाबालिग लड़की के साथ बलात्कार मामले में एक व्यक्ति को बरी करते हुए कहा कि यह किशोरावस्था में प्यार का मामला था।
दिल्ली उच्च न्यायालय ने नाबालिग लड़की के साथ बलात्कार मामले में एक व्यक्ति को बरी करते हुए कहा कि यह किशोरावस्था में प्यार का मामला था और उनके बीच शारीरिक संबंध सहमति से बने थे।न्यायमूर्ति जसमीत सिंह ने उस व्यक्ति की दोषसिद्धि को खारिज कर दिया, जो 2014 में घटना के समय 19 वर्ष का था और उस पर 17 वर्षीय लड़की के साथ बलात्कार करने का आरोप था।
अदालत ने 20 फरवरी को कहा, ‘‘... यह बात नजरअंदाज नहीं की जा सकती कि घटना के समय अपीलकर्ता (व्यक्ति) की आयु 19 वर्ष थी और अभियोक्ता (लड़की) की आयु लगभग 17 वर्ष थी। इस प्रकार, यह किशोरावस्था में प्यार का मामला था और शारीरिक संबंध सहमति से बने थे। इसलिए, पॉक्सो अधिनियम के तहत अपीलकर्ता को दोषी ठहराना न्याय की विकृति होगी।’’ अदालत ने कहा कि वयस्क होने की निर्धारित आयु को उस कानून के संदर्भ में समझा जाना चाहिए और उसकी व्याख्या की जानी चाहिए, जिसके लिए इस पर विचार किया जा रहा है।
लड़की के पिता ने गुमशुदगी का केस दर्ज कराया था
उसने लड़की के विचार को इस आधार पर खारिज करना अनुचित पाया कि वह 18 वर्ष से कम उम्र की थी, जबकि उसकी राय और इच्छा ‘निश्चित और अडिग’ थी। जेल से व्यक्ति की रिहाई का निर्देश देते हुए, उच्च न्यायालय ने कहा कि अभियोजन पक्ष लड़की की उम्र को साबित करने में असमर्थ रहा और संदेह का लाभ अपीलकर्ता को मिला। लड़की के पिता ने 2014 में गुमशुदगी की शिकायत दर्ज कराई थी और बाद में वह गाजियाबाद के एक व्यक्ति के साथ मिली।
सहमति से शारीरिक संबंध बनाने का दावा
उसने मंदिर में शादी करने और गाजियाबाद में किराए के मकान में रहने का खुलासा किया। उसने व्यक्ति के साथ सहमति से शारीरिक संबंध बनाने का दावा किया। एक निचली अदालत ने व्यक्ति को यौन अपराधों से बच्चों के संरक्षण (पॉक्सो) अधिनियम के तहत सात साल के कठोर कारावास की सजा सुनाई। व्यक्ति ने अपनी दोषसिद्धि को चुनौती देते हुए कहा कि निचली अदालत ने यह समझने में गलती की कि लड़की की हर कृत्य में सहमति थी और ऐसा कुछ भी नहीं था जो यह दर्शाता हो कि यह यौन उत्पीड़न का मामला था।
उच्च न्यायालय ने किशोरावस्था में प्रेम से जुड़े आपराधिक मामलों में ‘सजा’ के बजाय ‘समझ’ को प्राथमिकता देने वाले एक दयालु दृष्टिकोण की वकालत की, और कहा कि कानून में ऐसे रिश्तों को स्वीकार किया जाना चाहिए जो सहमति से बने हों और जबरदस्ती से मुक्त हों।
Published By : Rupam Kumari
पब्लिश्ड 24 February 2025 at 21:21 IST