अपडेटेड 19 February 2023 at 08:48 IST

Bhubaneswar: लिंगराज मंदिर यहां शिव के हृदय में बसते हैं हरि

Lingaraja Temple of Bhubaneswar: भारत के प्राचीन मंदिरों में से एक है लिंगराज मंदिर। 55 मीटर ऊंचाई पर बने इस मंदिर का निर्माण कलिंग और उड़िया शैली में किया गया है।

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IMAGE: SHUTTERSTOCKS | Image: self

Lingaraja Temple: भुवनेश्वर में मौजूद है देवों के देव महादेव जिनके दर्शन मात्र से ही भक्तों का जीवन हो जाता है सफल, भुवनेश्वर के लिंगराज मंदिर की बनावट और नजारा इतना ज्यादा आकर्षित कर देने वाला है कि देखते ही बनता है। हिंदू धर्म के अनुयायिओं की इस मंदिर के प्रति बहुत श्रद्धा है, यही वजह है कि हर साल लाखों लोग लिंगराज मंदिर की यात्रा और दर्शन करने जरूर आते हैं।

लिंगराज मंदिर  जैसा कि नाम से प्रतीत हो रहा है कि यह मंदिर भगवान शिव को समर्पित है, जो 7वीं शताब्दी में राजा जाजति केशती द्वारा बनवाया गया था। लिंगराज मंदिर की खास बात यह है कि यहां केवल हिंदू धर्म के अनुयायिओं को ही मंदिर में प्रवेश दिया जाता है। इस मंदिर की महिमा का अंदाजा इसी बात से लगाया जा सकता है कि मंदिर में रोजाना 6 हजार लोग लिंगराज के दर्शन के लिए आते हैं। लिंगराज मंदिर मुख्य रूप से भगवान शिव को समर्पित है, भगवान विष्णु के चित्र भी यहां मौजूद हैं। मुख्य मंदिर 55 मीटर लंबा है और इसमें लगभग 50 अन्य मंदिर हैं। भारत में लगभग हर लिंगम मंदिर केवल भगवान शिव को समर्पित है।

महाशिवरात्रि के दिन यहां लोग पूरी रात जागते हैं और भारी संख्या में भक्तों की मौजूदगी में भुवनेश्वर में लिंगराज मंदिर के ऊपर महादीपा को लगाया जाता है। यहां लोग महादीप के उठने के बाद ही खाना खाते हैं।

हालांकि, लिंगराज मंदिर को भारत में एकमात्र मंदिर माना जाता है जहां भगवान विष्णु और भगवान शिव दोनों की एक साथ पूजा होती है। प्रत्येक दिन यहां देवताओं को कुल 22 पूजा सेवाएं प्रदान की जाती हैं। हर साल एक बार लिंगराज की छवि को बिंदु सागर झील के केंद्र में जलमंदिर तक ले जाया जाता है।

लिंगराज मंदिर का इतिहास

लिंगराज मंदिर का इतिहास काफी पुराना है। यह मंदिर 11 वीं शताब्दी का माना जाता है। इस मंदिर को राजा जाजति केशरी ने बनवाया था, जब उन्होंने अपनी सैन्य राजधानी को भुवनेश्वर से जयपुर स्थानांतरित कर दिया था। हालांकि इतिहासकारों का मानना ​​है कि मंदिर किसी अन्य रूप में 6 वीं शताब्दी के बाद से मौजूद है, क्योंकि इसे 7 वीं शताब्दी की पांडुलिपि, ब्रह्म पुराण में उल्लेख किया गया है, जो भुवनेश्वर में भगवान शिव के महत्व पर केंद्रित है।

लिंगराज मंदिर किसने बनाया है?

इतिहास के अनुसार, माना जाता है कि मंदिर का निर्माण 11 वीं शताब्दी के दौरान सोमवंशी राजा जाजति प्रथम (1025-1040) ने कराया था। जाजति केशरी ने अपनी राजधानी को जाजपुर से भुवनेश्वर में स्थानांतरित कर दिया था जिसे ब्रह्म पुराण में एक प्राचीन ग्रंथ के रूप में एकाक्षर कहा गया था।

लिंगराज मंदिर में जाने से पहले जान लें ये बातें

लिंगराज मंदिर में गैर-हिंदुओं को जाने की अनुमति नहीं है।

मंदिर में कैमरा, मोबाईल फोन, चमड़े की कोई भी सामग्री, पॉलिथिन और बैग नहीं लेकर जा सकते हैं।

मंदिर में फोटोग्राफी करना पूर्ण रूप से प्रतिबंधित है।

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Published By : Rashmi Agarwal

पब्लिश्ड 19 February 2023 at 08:47 IST