अपडेटेड 8 November 2024 at 12:27 IST

AMU अल्पसंख्यक संस्थान रहेगा या नहीं, SC की नई बेंच तय करेगी; फिलहाल 1967 वाला फैसला खारिज

अलीगढ़ मुस्लिम यूनिवर्सिटी को अल्पसंख्यक दर्जा देने पर फैसला नहीं हुआ है। फिलहाल सुप्रीम कोर्ट ने बहुमत से 1967 का अजीज बाशा का फैसला पलटा है।

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अलीगढ़ मुस्लिम यूनिवर्सिटी को अल्पसंख्यक दर्जा देने पर सुप्रीम कोर्ट की नई बेंच फैसला करेगी। | Image: (Getty Images)

Aligarh Muslim University minority status: अलीगढ़ मुस्लिम विश्वविद्यालय को अल्पसंख्यक दर्जा देने पर फैसला नहीं हुआ है। मुख्य न्यायाधीश डीवाई चंद्रचूड़ की अगुवाई वाली सुप्रीम कोर्ट की 7 सदस्यीय बेंच ने फिलहाल बहुमत से 1967 का अजीज बाशा का फैसला पलटा है, जिसमें AMU को अल्पसंख्यक दर्जा देने से इनकार किया गया था। हालांकि कोर्ट ने इस फैसले में दिए गए निष्कर्षों के आधार पर AMU के अल्पसंख्यक दर्जे को नए सिरे से निर्धारित करने का काम 3 जजों की बेंच पर छोड़ा है। अभी अलीगढ़ मुस्लिम यूनिवर्सिटी को अल्पसंख्यक का दर्जा देने पर फैसला सुप्रीम कोर्ट की 3 सदस्यीय नई बेंच करेगी।

मुख्य न्यायाधीश डीवाई चंद्रचूड़, जस्टिस संजीव खन्ना, जस्टिस सूर्यकांत, जस्टिस जेबी पारदीवाला, जस्टिस दीपांकर दत्ता, जस्टिस मनोज मिश्रा और जस्टिस सतीश चंद्र शर्मा की संविधानिक बेंच में मामले की सुनवाई हुई। सुप्रीम कोर्ट ने 4:3 से एस अजीज बाशा बनाम यूनियन ऑफ इंडिया मामले को खारिज कर दिया, जिसमें 1967 में कहा गया था कि चूंकि अलीगढ़ मुस्लिम विश्वविद्यालय एक केंद्रीय विश्वविद्यालय है, इसलिए इसे अल्पसंख्यक संस्थान नहीं माना जा सकता। आज की सुनवाई में तय हुआ कि AMU अल्पसंख्यक संस्थान है या नहीं, ये 3 जजों की नई बेंच फैसला देगी।

सुप्रीम कोर्ट ने अपने फैसले में क्या कहा?

सीजेआई डीवाई चंद्रचूड़ ने अनुच्छेद 30 ए के तहत किसी संस्था को अल्पसंख्यक माने जाने के मानदंड क्या हैं? इस बात पर विवाद नहीं किया जा सकता कि अनुच्छेद 30 अल्पसंख्यकों के साथ भेदभाव न किए जाने की गारंटी देता है। सवाल ये है कि क्या इसमें गैर-भेदभाव के अधिकार के साथ-साथ कोई विशेष अधिकार भी है। मुख्य न्यायाधीश ने कहा कि किसी भी नागरिक की तरफ से स्थापित शैक्षणिक संस्थान को अनुच्छेद 19(6) के तहत विनियमित किया जा सकता है। अनुच्छेद 30 के तहत अधिकार निरपेक्ष नहीं है। उन्होंने कहा कि आर्टिकल 30 के तहत अल्पसख्यक समुदाय को अपने संस्थानों को संचालित करने का मिला अधिकार कोई असीमित अधिकार नहीं है। आर्टिकल 19(6) के तहत अल्पसंख्यक संस्थाओं को भी रेगुलेट किया जा सकता है।

सुप्रीम कोर्ट ने ये फैसला देने से फिलहाल इनकार किया कि AMU अल्पसंख्यक संस्थान है या नहीं, लेकिन अल्पसंख्यक दर्जा के लिए मानदंड तय किए हैं। पीठ ने कहा कि यह निर्धारित करने के लिए कि कोई संस्थान अल्पसंख्यक संस्थान है या नहीं, यह देखने की जरूरत है कि संस्थान की स्थापना किसने की। सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि सिर्फ संस्थान की स्थापना ही नहीं, बल्कि प्रशासन कौन कर रहा है, ये भी निर्णायक कारक है। इसी आधार पर नियमित बेंच सुनवाई करेगी।

3 जजों ने असहमति का फैसला दिया

सीजेआई ने अपने और जस्टिस संजीव खन्ना, जेडी पारदीवाला और मनोज मिश्रा के लिए बहुमत की राय लिखी। जस्टिस सूर्यकांत, दीपांकर दत्ता और सतीश चंद्र शर्मा ने असहमति का फैसला दिया। जस्टिस दीपंकर दत्ता और जस्टिस सूर्यकांत ने अपने अल्पमत के फैसले में कहा है कि AMU अल्पसंख्यक संस्थान नहीं है।

AMU को अल्पसंख्यक दर्जा का मामला समझिए?

1967 में एस अजीज बाशा बनाम भारत संघ मामले में 5 न्यायाधीशों की संविधान पीठ ने माना था कि चूंकि AMU एक केंद्रीय विश्वविद्यालय है, इसलिए इसे अल्पसंख्यक संस्थान नहीं माना जा सकता। 1981 में संसद की तरफ से एएमयू (संशोधन) अधिनियम पारित किए जाने पर विश्वविद्यालय को अपना अल्पसंख्यक दर्जा वापस मिल गया। हालांकि जनवरी 2006 में इलाहाबाद हाईकोर्ट ने 1981 के कानून के उस प्रावधान को खारिज कर दिया, जिसके तहत विश्वविद्यालय को अल्पसंख्यक दर्जा दिया गया था। बाद में केंद्र की कांग्रेस के नेतृत्व वाली यूपीए सरकार ने इलाहाबाद हाईकोर्ट के आदेश के खिलाफ अपील में सुप्रीम कोर्ट का दरवाजा खटखटाया। विश्वविद्यालय ने इसके खिलाफ एक अलग याचिका भी दायर की।

2016 में बीजेपी के नेतृत्व वाली एनडीए सरकार ने शीर्ष अदालत से कहा कि वो पूर्ववर्ती यूपीए सरकार की तरफ से दायर की गई अपील को वापस ले लेगी। शीर्ष अदालत ने 12 फरवरी 2019 को मामले को 7 जजों की पीठ को सौंप दिया। 7 जजों की पीठ की सुनवाई के दौरान केंद्र सरकार की ओर से पेश सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने शीर्ष अदालत को बताया कि 1920 में अल्पसंख्यक या अल्पसंख्यक अधिकारों की कोई अवधारणा नहीं थी। AMU अधिनियम 1920 में अस्तित्व में आया। केंद्र सरकार ने तर्क दिया कि राष्ट्रीय महत्व के संस्थान को अल्पसंख्यक का दर्जा नहीं दिया जा सकता है, क्योंकि इसका मतलब होगा कि संस्थान समाज के कई वर्गों की पहुंच से बाहर हो जाएगा और एससी/एसटी/एसईबीसी श्रेणियों के लिए आरक्षण को बाहर कर देगा।

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Published By : Dalchand Kumar

पब्लिश्ड 8 November 2024 at 11:18 IST