अपडेटेड 6 May 2025 at 20:55 IST
1971 के बाद भारत में अब बजेगा एयर रेड वॉर्निंग सायरन, इन देशों में रोज बजते हैं Siren; मॉकड्रिल के जरिए युद्ध की तैयारी
जब किसी देश के हवाई क्षेत्र में दुश्मन की ओर से कोई मिसाइल, फाइटर जेट, ड्रोन या लोइटरिंग एम्युनिशन घुसता है, तो सबसे पहले एयर डिफेंस रडार सक्रिय हो जाता है।
पहलगाम में आतंकी हमले के बाद भारत और पाकिस्तान के बीच युद्ध की नौबत आ चुकी है। भारत किसी भी कीमत पर पाकिस्तान के इस अक्षम्य अपराध को क्षमा करने के मूड में नहीं दिखाई दे रहा है और एक के बाद करके पाकिस्तान के खिलाफ सख्त फैसले लेता जा रहा है। भारत के कड़े फैसलों की वजह से पाकिस्तान में भुखमरी की नौबत आने को है। दोनों देशों के बीच अब किसी भी क्षण युद्ध शुरू हो सकता है। पाकिस्तान इस बार भारत के संभावित हमलों से घबराया हुआ है। वो लगातार भारत से युद्ध करने से बचने के उपाय सोच रहा है। इस बीच भारत ने भी एक बड़ी मॉड्रिल की तैयारी कर ली है। भारत में 7 मई को देश के 244 जिलों में एक बड़ी मॉकड्रिल का आयोजन किया गया है और इस दौरान साल 1971 के बाद से पहली बार देश में एयर रेड वॉर्निंग सायरन भी बजाया जाएगा और सिविल डिफेंस की तैयारियों को परखा जाएगा। आइए आपको बताते हैं कि रेड वॉर्निंग सायरन कब बजाए जाते हैं।
जब किसी देश के हवाई क्षेत्र में दुश्मन की ओर से कोई मिसाइल, फाइटर जेट, ड्रोन या लोइटरिंग एम्युनिशन घुसता है, तो सबसे पहले एयर डिफेंस रडार सक्रिय हो जाता है। आम तौर पर एयर डिफेंस की जिम्मेदारी वायुसेना के पास होती है, लेकिन युद्ध जैसी स्थिति में थलसेना का एयर डिफेंस भी एक्टिव हो जाता है। दुनियाभर के देशों ने अपने एयर डिफेंस सिस्टम को कई लेयर्स में बांटा होता है। सबसे ऊपरी लेयर में लांग रेंज एयर डिफेंस मिसाइलें होती हैं, उसके बाद मीडियम और शॉर्ट रेंज की मिसाइलें आती हैं। यदि कोई खतरा इनसे भी बच निकलता है, तो अंतिम सुरक्षा के रूप में वेरी शॉर्ट रेंज शोल्डर फायर मिसाइल सिस्टम तैनात रहते हैं, जिन्हें सैनिक सीधे कंधे से दाग सकते हैं।
हवाई क्षेत्र में दुश्मन के एयर स्पेस में घुसने के बाद...
जब कोई एयर थ्रेट देश की सीमाओं को पार करता है, तो सबसे पहले रडार उसे पहचानता है। इसके बाद कमांड सेंटर से जुड़े एयर डिफेंस सिस्टम और लड़ाकू विमान तुरंत उसे नष्ट करने की कार्रवाई में जुट जाते हैं। सभी रडार एक इंटीग्रेटेड एयर कमांड एंड कंट्रोल सिस्टम से जुड़े होते हैं, जिससे रियल टाइम में सूचना साझा होती है। अगर फिर भी कोई अटैक इन सारी सुरक्षा परतों को पार कर जाता है, तो रडार से उसकी दिशा और गति का आकलन कर यह पता लगाया जाता है कि वह कहां गिर सकता है। इसके आधार पर संभावित इलाके के सिविल डिफेंस को अलर्ट किया जाता है और वहां एयर रेड सायरन बजा दिए जाते हैं, ताकि नागरिक समय रहते सुरक्षित स्थानों पर पहुंच सकें।
ऐसे मॉनीटर होते हैं एयर स्पेस
एयर स्पेस का अपना एक अनुशासन होता है। वहां उड़ने की इजाजत सिर्फ दो ही प्रकार के विमानों को होती है सिविल एयरलाइनों और मिलिट्री एयरक्राफ्ट को। जैसे ज़मीन पर ट्रेनें पटरी पर चलती हैं, वैसे ही आसमान में भी एयरक्राफ्ट एक तयशुदा रूट पर उड़ते हैं। हर विमान के लिए उसका रूट पहले से तय होता है, और वह उसी रास्ते पर सफर करता है। हर उड़ान से पहले, पायलट को अपना फ्लाइट प्लान जमा करना होता है। इसके बाद एयर डिफेंस की ओर से उसे अनुमति मिलती है, जिसे IFF सिस्टम कहते हैं Identification Friend or Foe। यह सिस्टम ज़मीन पर लगे रडार और विमान में लगे ट्रांसपॉन्डर के ज़रिए यह तय करता है कि यह विमान दोस्त है या दुश्मन। हर एयरक्राफ्ट का एक कोड होता है जो ट्रांसपॉन्डर के ज़रिए भेजा जाता है। लेकिन अगर कोई विमान अपना ट्रांसपॉन्डर बंद कर देता है, तो उसकी पहचान छुप जाती है।
रडार टोही विमान की चाल और ऊंचाई से करता है निगरानी
ऐसे में रडार उसकी चाल और ऊंचाई से उसकी निगरानी करता है, और उसे सिग्नल भेजे जाते हैं। अगर विमान इन सिग्नलों का जवाब नहीं देता, तो एयरफोर्स के फाइटर जेट्स तुरंत अलग-अलग बेस से उड़ान भरते हैं। फिर या तो उस विमान को एयरस्पेस से बाहर निकाल दिया जाता है, या ज़बरदस्ती लैंड करवा दिया जाता है। जंग के दौरान हालात और भी संवेदनशील हो जाते हैं। ऐसे समय में मिलिट्री एयरक्राफ्ट IFF सिस्टम बंद कर देते हैं ताकि वे दुश्मन की नज़रों से छुपे रह सकें। ये विमान फिर अनआईडेंटिफाइड ऑब्जेक्ट के रूप में रडार पर दिखते हैं। वहीं, मिसाइल और रॉकेट्स में ट्रांसपॉन्डर जैसा कोई सिस्टम नहीं होता। उनकी पहचान सिर्फ उनकी गति और रास्ते से होती है, जो रडार पर दिखाई देती है।
रूस, यूक्रेन और इजरायल में रोज बजते है सायरन
इजरायल की फिजाओं में आज भी खतरे की आवाज़ें गूंजती हैं। हर दिन मिसाइल अटैक के सायरन लोगों को सतर्क करते हैं। यह सिर्फ इजरायल की कहानी नहीं है यूक्रेन और रूस के युद्धग्रस्त इलाकों में भी ऐसी ही चेतावनियों की गूंज सुनाई देती है। इजरायल पर अब तक हजारों की संख्या में रॉकेट दागे जा चुके हैं कभी हमास और हिज़बुल्ला की तरफ से, तो कभी ईरान और हूती विद्रोहियों की ओर से। हमास ने तो कई बार जानबूझकर इतने रॉकेट एकसाथ छोड़े कि आयरन डोम की अधिकतम क्षमता को ही चुनौती दे दी। लेकिन हर बार, इजरायल का एयर डिफेंस सिस्टम आयरन डोम एक दीवार बनकर खड़ा रहा। इसका शक्तिशाली रडार सबसे पहले आकाश में उड़ते रॉकेट को पहचानता है, उसकी गति और दिशा को ट्रैक करता है और फिर उसे हवा में ही नष्ट कर देता है।
पूरी तरह से ऑटोमेटिक होते हैं ऑयरन डोम
आयरन डोम पूरी तरह से ऑटोमेटिक है। जैसे ही कोई एरियल थ्रेट यानी रॉकेट या मिसाइल सीमा में दाखिल होता है, यह सिस्टम खुद-ब-खुद सक्रिय हो जाता है। इसकी सबसे बड़ी खासियत यह है कि यह उन रॉकेटों को ही इंटरसेप्ट करता है जो आबादी वाले इलाकों की ओर बढ़ रहे होते हैं। जैसे ही कोई रॉकेट किसी भीड़भाड़ वाले क्षेत्र की ओर आता है, उस इलाके में तुरंत एयर रेड वॉर्निंग सायरन बजने लगते हैं। लोग शेल्टर में भाग जाते हैं, और कुछ ही पलों में आयरन डोम उसे आसमान में ही खत्म कर देता है। इजरायल ने इस तकनीक को खासतौर पर हाई-स्पीड रॉकेट और मिसाइल हमलों को रोकने के लिए विकसित किया है और यह हर रोज़ साबित करता है कि आधुनिक तकनीक, जान बचाने की सबसे बड़ी ताकत बन सकती है।
Published By : Ravindra Singh
पब्लिश्ड 6 May 2025 at 20:55 IST