अपडेटेड 6 February 2023 at 11:58 IST
Birthday Special: Bharat Ratna पाने वाले पहले गैर-भारतीय नेता Abdul Ghaffar Khan की कहानी
Birthday Special Abdul Ghaffar Khan: अब्दुल गफ्फार खान की आज जयंती है। इन्हें ’फ्रंटियर गांधी’ के नाम से भी जाना जाता है।
Birthday Special Abdul Ghaffar Khan: भारत में अहिंसा आंदोलन की जैसे ही चर्चा होती है तो हमारी जुबां पर राष्ट्रपिता महात्मा गांधी का नाम आता है। मगर एक ऐसे भी नेता थे जिन्होंने बापू की तरह अहिंसा के रास्ते पर चलकर अंग्रेजों का विरोध किया था। जी हां हम बात कर रहे हैं भारत रत्न पाने वाले पहले गैर भारतीय नेता खान अब्दुल गफ्फार खान की। अब्दुल गफ्फार खान की आज जयंती है। इन्हें ’फ्रंटियर गांधी’ (Frontier Gandhi) के नाम से भी जाना जाता है।
खान अब्दुल गफ्फार खान का जन्म 6 फरवरी 1890 को पाकिस्तान के पश्तून परिवार में हुआ था। अलीगढ़ मुस्लिम यूनीवर्सिटी से पढ़ाई करने वाले अब्दुल गफ्फार खान अंग्रेजों के विरोधी थे। यही वजह रही है कि पढ़ाई के दौरान ही वो ब्रिटिश के खिलाफ चलाए जाने वाले क्रांतिकारी आंदोलनों में शामिल हो गए थे। अब्दुल ने पश्तून लोगों को अंग्रेजों के जुल्म से बचाने की कसम खा ली। महज 20 साल की उम्र में उन्होंने पश्तूनी बच्चों को शिक्षित करने के लिए स्कूल खोला, लेकिन अंग्रेजी हुकूमत ने उनके स्कूल को 1915 में प्रतिबंधित कर दिया। पश्तूनों को जागरूक करने के अब्दुल खान ने 3 साल तक सैकड़ों गांवों की यात्रा की।
खुदाई खिदमतगार आंदोलन से चर्चा में आए थे अब्दुल गफ्फार खान
पश्तून मूवमेंट के चलते ही अब्दुल गफ्फार खान चर्चा में आ गए थे। इनकी मुलाकात जब महात्मा गांधी से हुई तो वह उनसे बेहद प्रभावित हो गए और बापू के अहिंसा आदोलनों में शामिल होने लगे। गफ्फार खान ने साल 1929 में खुदाई खिदमतगार (servant of God) आंदोलन शुरू किया। यह ब्रिटिश शासन के विरुद्ध एक अहिंसक आंदोलन था। सामान्य लोगों की भाषा में वे सुर्ख पोश थे। खुदाई खिदमतगर आंदोलन गांधी जी के अहिंसात्मक आंदोलन से प्रेरित था। इस आंदोलन की सफलता से अंग्रेज शासक तिलमिला उठे और उन्होंने बाचा खान और उनके समर्थकों पर जमकर जुल्म ढाए।
खुदाई खिदमतगारों ने भारत विभाजन का किया था विरोध
अब्दुल गफ्फार खान और अन्य नेताओं की गिरफ्तारी के बाद यह आंदोलन ऑल इंडिया मुस्लिम लीग से समर्थन प्राप्त करने में विफल रहा, जिसके बाद यह औपचारिक रूप से भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस में शामिल हो गया। इनकी पहचान अहिंसा के रास्तों पर चलने वाले के तौर पर होती थी, यही वजह रही कि खान की गिरफ्तारी को लेकर पेशावर सहित पड़ोसी शहरों में विरोध प्रदर्शन होने लगे। बता दें कि खुदाई खिदमतगारों ने भारत के विभाजन का विरोध किया था।
फ्रंटियर गांधी के नाम से मशहूर अब्दुल गफ्फार खान
फ्रंटियर गांधी के नाम से मशहूर अब्दुल गफ्फार खान को बाचा खान और बादशाह खान के नाम से भी जाना जाता है। महात्मा गांधी के एक दोस्त ने उन्हें फ्रंटियर गांधी का नाम दिया था। उन्हें दो बार नोबेश शांति पुरस्कार के लिए भी नामांकित किया गया। 1987 में उन्हें भारत रत्न भी मिला था। भारत रत्न सम्मान पाने वाले वो पहले गैर-भारतीय राजनेता थे। 29 मार्च 1931 को लंदन दूसरे गोलमेज सम्मेलन के पहले महात्मा गांधी और तत्कालीन वायसराय लार्ड इरविन के बीच एक राजनैतिक समझौता हुआ जिसे गांधी-इरविन समझौता कहते हैं। इस समझौते के बाद अब्दुल गफ्फार खान को जेल से रिहा कर दिया गया और फिर वह समाज सेवा में लग गए।
अब्दुल गफ्फार खान की जीवन पर बनी डॉक्यूमेंट्री फिल्म
कनाडा के दार्शनिक और प्रोफेसर मार्शल मैक्लुहान ने अब्दुल गफ्फार खान के जीवन पर एक डॉक्यूमेंट्री फिल्म बनाई थी। मैक्लुहान ने बादशाह उर्फ बाचा खान की कहानी को पर्दे पर लाने के लिए 21 साल सूट के उपरांत एक उत्कृष्ट डॉक्यूमेंट्री ’द फ्रंटियर गांधीः बादशाह खान, ए टॉर्च फॉर पीस’ फिल्म बनाई। मैक्लुहान ने इस डॉक्यूमेंट्री के बारे में बताया था कि यह फिल्म एक पूरी यात्रा है जो साल 1987 में कनाडा से शुरू हुई थी। उनके एक दोस्त ने उन्हें एकनाथ ईश्वरन की एक किताब ’इस्लाम के अहिंसक सैनिक’ (जो खान अब्दुल गफ्फार खान के जीवनी पर लिखी थी) भेंट की। इस किताब को पढ़ने के बाद उन्होंने गफ्फार खान पर डॉक्यूमेंट्री फिल्म बनाने का फैसला किया। साल 1988 में पाकिस्तान सरकार ने उन्हें पेशावर में उनके घर में ही नजरबंद कर दिया था जिसके बाद 20 जनवरी 1988 को अब्दुल गफ्फार खान का निधन हो गया था। उनकी अंतिम इच्छानुसार उन्हें जलालाबाद अफगानिस्तान में दफनाया गया था।
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Published By : Digital Desk
पब्लिश्ड 6 February 2023 at 11:57 IST