अपडेटेड 17 September 2023 at 15:49 IST

हैदराबाद के भारत में विलय के 75 साल; ऐसी है इस रियासत के भारतीय संघ का अभिन्न अंग बनने की कहानी

हैदराबाद को भारत का हिस्सा बने 75 साल हो गए हैं। देश की आजादी के 400वें दिन यानी 17 सितंबर 1948 को हैदराबाद का भारत में विलय हुआ।

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Hyderabad (Photo - ANI) | Image: self

15 अगस्त 1947 को भारत आजाद तो हो गया था, लेकिन एक हिस्सा ऐसा भी था, जो एक साल से अधिक समय तक भारतीय संघ से जुड़ ही नहीं पाया था। ये रियासत थी पूर्ववर्ती हैदराबाद, जिसमें आज का संपूर्ण तेलंगाना राज्य और कर्नाटक और महाराष्ट्र के सीमावर्ती हिस्से समाहित हैं। आज हैदराबाद का जिक्र इसलिए हो रहा है, क्योंकि उस रियासत के भारतीय संघ में विलय के 75 साल हो गए हैं।

खबर में आगे पढ़ें:- 

  • हैदराबाद को भारत का हिस्सा बने 75 साल पूरे
  • 17 सितंबर 1948 को हैदराबाद का भारत में विलय
  • ऑपरेशन पोलो के बाद हैदराबाद बना भारत का हिस्सा

आजादी के बाद भी भारत का हिस्सा नहीं था हैदराबाद

17 सितंबर 1948, वो तारीख थी, जब हैदराबाद रियासत भारत का हिस्सा बनी। खैर, भारत में इस रियासत का विलय यूं ही नहीं हो गया था। इसके पीछे की कहानी बड़ी संघर्ष भरी रही है। 

1974 में जब अंग्रेजों से गुलामी से आजादी मिली थी, तो भारत को बंटवारे का दंश भी झेलना पड़ा था। आजादी के बाद भारत से अलग होकर पाकिस्तान अस्तित्व में आया। हालांकि हैदराबाद रियासत उस समय भी भारतीय संघ का हिस्सा न बन सकी।

हैदराबाद पर भी निजामों का शासन

वैसे तो आजादी के जश्न में पूरा देश डूबा हुआ था, लेकिन हैदराबाद रियासत का विलय न होना लौहपुरुष सरदार पटेल जैसे महा स्वतंत्रता सेनानियों को भारत के पेट में कैंसर जैसा लगता था। हैदराबाद रियासत, हालांकि भौगोलिक रूप से भारत का एक हिस्सा थी, लेकिन यह आसफ जाही (निजाम) शासकों के शासन के अधीन थी।

हैदराबाद के आखिरी निजाम मीर उस्मान अली खान थे, जिन्होंने 1911 से 1948 तक राज्य पर शासन किया। 11 जून 1947 को निजाम ने घोषणा की कि उसका इरादा भारत या पाकिस्तान में शामिल नहीं होना और 15 अगस्त 1947 से एक स्वतंत्र संप्रभु बने रहना है।

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अंग्रेजों से आजादी के बाद 399 दिन तक हैदराबाद पर निजाम का शासन रहा। निजाम वैसे तो प्रमुख तौर पर हिंदू आबादी पर शासन करने वाले मुस्लिम थे, लेकिन आजादी के बाद इस बात पर जोर दिया गया कि यहां के अधिकांश निवासी भारत में शामिल होना चाहते हैं, लेकिन निजाम मीर उस्मान अली खान अपने अड़ियल रुख पर बना हुआ था। 

29 नवंबर 1947 को निजाम ने भारत के साथ एक साल तक के लिए स्टैंडस्टिल समझौते पर हस्ताक्षर किए थे। इसी बीच कुछ दिनों के बाद हैदराबाद में उथल-पुथल होने लगी थी।

सरदार पटेल ने लिया था बड़ा फैसला

निजाम ने हैदराबाद के लिए प्रभुत्व का दर्जा सुरक्षित करने के लिए कूटनीतिक रूप से कई प्रयास किए, यहां तक कि ब्रिटिश सरकार से भी मदद मांगी गई थी। इसके बाद सरदार पटेल ने 'राष्ट्र सर्वप्रथम' के सिद्धांत को चरितार्थ कर हैदराबाद में एक्शन का निर्णय लिया था। हैदराबाद को भारत में विलय कराने के पीछे सरदार पटेल ही थे। 

बताया जाता है कि निजाम कमजोर स्थिति में था और उसके पास 24,000 लोगों की ही सेना थी, जिनमें से 6,000 ही लोग ट्रेंड थे। 13 सितंबर 1948 को भारत ने ऑपरेशन पोलो शुरू किया था।

चार दिन तक ये ऑपरेशन चलता रहा और फिर निजाम के रजाकारों की सेना को सरेंडर करने पर मजबूर होना पड़ा। देश की आजादी के 400वें दिन यानी 17 सितंबर 1948 को हैदराबाद का भारत में विलय हुआ।

अब राजनीति में नई खींचतान

अब हैदराबाद को भारत का हिस्सा बने 75 साल हो गए हैं। हालांकि अभी इस बात को लेकर राजनीतिक खींचतान चल रही है कि इसे 'हैदराबाद मुक्ति संघर्ष' कहा जाना चाहिए या 'राष्ट्रीय एकता दिवस' में मनाना चाहिए।

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Published By : Dalchand Kumar

पब्लिश्ड 17 September 2023 at 15:47 IST