अपडेटेड 29 August 2025 at 19:59 IST

Pitru Paksha 2025: पितृ पक्ष में इन रूपों में दर्शन देते हैं आपके पूर्वज, रास्ते में भी दिखें तो भूले से भी न करें इनका अनादर

पितृ पक्ष में पूर्वज किन रूपों में दर्शन देते हैं और उनका सम्मान कैसे करें। जानें पितृ पक्ष का महत्व और पूर्वजों को प्रसन्न करने के तरीके।

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हिन्दू धर्म में पितृपक्ष का बड़ा महत्व है। हिंदू पंचांग के मुताबिक, पितृपक्ष की शुरुआत 7 सितंबर पूर्णिमा से होगा और 21 सितंबर को अमावस्या तिथि पर पितृपक्ष समाप्त होगा।
 

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इन 15 दिनों के दौरान लोग पितरों को याद कर उनके निमित्त तर्पण, श्राद्ध और पिंडदान करते हैं।
 

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पितृ पक्ष में पूर्वज कई रूपों में दर्शन देते हैं। आइए जानते हैं कि पितृ पक्ष में पूर्वज किन रूपों में आते हैं और उनका सम्मान कैसे करें।
 

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पितृ पक्ष के दौरान कई बार पितर साधु, संत या भिक्षुक के रूप में प्रकट होते हैं। इस दौरान साधुओं, संतों, गरीबों को भोजन और दान देना पितरों को प्रसन्न करने का एक तरीका माना जाता है।

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गाय और कुत्ते: हिन्दू धर्म में गाय को गौ माता का दर्जा दिया गया है। श्राद्ध पक्ष में गाय या कुत्ते का भी द्वार पर आना बहुत शुभ माना जाता है। 

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अगर गाय और कुत्ते रास्ते में भी दिख जाए तो इन्हें भगाना या दुत्कारना नहीं चाहिए।
 

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अतिथि: पितृ पक्ष के दौरान पितर कभी-कभी घर के मेहमान के रूप में भी आ सकते हैं। इनका सम्मान करना चाहिए और उन्हें तिरस्कार नहीं करना चाहिए।
 

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कौए: हिंदू धर्म में कौवों को पितरों का प्रतीक माना जाता है, क्योंकि यह मान्यता है कि पितरों की आत्माएं कौए के रूप में आकर अपने वंशजों से भोजन और पूजा ग्रहण करती हैं।
 

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पितृ पक्ष में पूर्वजों का सम्मान करना बहुत महत्वपूर्ण है। इन रूपों में आने वाले पूर्वजों का आदर करने से पितृ प्रसन्न होते हैं और हमें आशीर्वाद देते हैं। 

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Disclaimer: यहां दी गई जानकारी सिर्फ अलग-अलग सूचना और मान्यताओं पर आधारित है। REPUBLIC BHARAT इस आर्टिकल में दी गई किसी भी जानकारी की सत्‍यता और प्रमाणिकता का दावा नहीं करता है।

Published By : Nidhi Mudgill

पब्लिश्ड 29 August 2025 at 19:59 IST