अपडेटेड 4 April 2025 at 17:48 IST

कहानी पाकिस्तान से आए हरिकिशन गोस्वामी की, जिसने सुनाई 'भारत की बात', सबसे बड़ी हिट देकर 'शोले' और 'मुगल-ए-आजम' को पछाड़

1957 में आई फिल्म 'फैशन' में मनोज कुमार ने भिखारी का रोल निभाया था, यह उनकी पहली फिल्म थी। उन्होंने हिंदी सिनेमा में भिखारी से 'भारत कुमार' तक का सफर तक किया।

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कहानी पाकिस्तान से आए हरिकिशन गोस्वामी की | Image: Republic

Manoj Kumar Death : "भारत का रहने वाला हूं, भारत की बात सुनाता हूं..." हिंदी सिनेमा के स्तंभ और करीब 50 साल हिंदी फिल्म इंडस्ट्री पर राज करने वाले मनोज कुमार अब हमारे बीच नहीं हैं। कोकिलाबेन अंबानी अस्पताल में तड़के करीब साढ़े 3 बजे उनका निधन हुआ। अपनी फिल्मों से युवा दिलों में देशभक्ति की भावना जगाने वाले हैंडसम और शर्मीली छवि वाले एक्टर मनोज कुमार ‘भारत कुमार’ के नाम से भी जाने जाते थे, लेकिन उनका असली नाम हरिकिशन गोस्वामी था।

भारतीय सिनेमा के सबसे बड़े पुरस्कार दादा साहेब फाल्के, पद्मश्री और राष्ट्रीय पुरस्कार से सम्मानित मनोज कुमार का फिल्मी सफर शानदार रहा। पाकिस्तान के ऐबटाबाद में जन्मे मनोज कुमार ने 55 फिल्मों में काम किया। देश का बंटवारा होने के बाद वो भारत चले आए। राज्य सभा टीवी को दिए एक इंटरव्यू में मनोज कुमार अपने बचपन और लौहार को याद करते हुए रो पड़े थे। निर्माता-निर्देशक और अभिनेता मनोज कुमार ने लंबा सिनेमाई सफर तय किया। उनकी देशभक्ति फिल्मों के लिए हमेशा उन्हें याद किया जाएगा।

हरिकिशिन से मनोज बनने की कहानी

मां-बाप ने मनोज कुमार का नाम हरिकिशन गोस्वामी रखा था। उन्हें बचपन से ही हिंदी फिल्म देखना पसंद था। हरिकिशिन ने अपने बपचपन में दिलीप कुमार की फिल्म 'शबनम' देखी थी। इसमें दिलीप कुमार का नाम मनोज कुमार था। उन्हें ये नाम इतना पसंद आया कि रुपहले पर्दे पर आने के बाद उन्होंने अपना नाम मनोज कुमार ही रख लिया। उनको पहला रोल 1957 में आई फिल्म 'फैशन' में एक भिखारी का मिला था। साल 1962 में आई फिल्म 'हरियाली और रास्ता' मनोज कुमार के करियर की पहली सिल्वर जुबली हिट थी।

सबसे बड़ी हिट

मनोज कुमार ने 1957 में 20 साल की उम्र में बतौर अभिनेता सिनेमा जगत में कदम रखा, लेकिन उन्हें हीरो के तौर पर बहुत बाद में सफलता मिली। बॉलीवुड के भारत कुमार ने हिंदी सिनेमा में देशभक्ति की फिल्मों पर एकाधिकार कर लिया था और फिल्मों की उपलब्धियों में नई सीमाएं स्थापित कीं। हालांकि उन्हें 60 के दशक में 'पूरब और पश्चिम' और 'उपकार' जैसी सदाबहार क्लासिक फिल्मों के लिए सबसे ज्यादा याद किया जाता है, लेकिन उनकी सबसे बड़ी हिट बहुत बाद में आई, जिसने सिनेमाघरों के बाहर हिंदी सिनेमा के काम करने के तरीके को बदल दिया।

मनोज कुमार को अपनी पहली हिट 1962 में 'हरियाली और रास्ता' मिली, लेकिन उन्हें स्टार 1965 में आई देशभक्ति ब्लॉकबस्टर फिल्म 'शहीद' ने बनाया। इसके बाद उन्होंने डायरेक्शन में भी हाथ आजमाया। फिल्म उपकार (1967) के साथ निर्देशक की भूमिका निभाई और बाद में पूरब और पश्चिम (1970), रोटी कपड़ा और मकान (1974) बनाई। ये सभी फिल्में शानदार हिट रहीं, लेकिन सबसे अच्छी फिल्म अभी आनी बाकी थीं। 1981 में मनोज ने अपनी सबसे बड़ी फिल्म 'क्रांति' दी।

'शोले' और 'मुगल-ए-आजम' को पछाड़ा

क्रांति दशक की सबसे बड़ी हिट फिल्म थी। कमाई के मामले में शोले, मुगल-ए-आजम और मदर इंडिया जैसी फिल्मों को भी पछाड़ दिया था। क्रांति ने दुनिया भर में उस वक्त करीब 20 करोड़ रुपये कमाए थे। दिल्ली और यूपी में तो कमाई का रिकॉर्ड 13 साल तक कायम रहा था। यहां फिल्म ने 3 करोड़ रुपये कमाए थे। क्रांति अपने दौर में पॉप कल्चर सनसनी थी। दिल्ली, राजस्थान, यूपी और हरियाणा में फिल्म का क्रेज जबरदस्त था।

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Published By : Sagar Singh

पब्लिश्ड 4 April 2025 at 17:48 IST