अपडेटेड 12 April 2024 at 17:06 IST
टीएन शेषन,वो शख्स जिसने पहली बार दिखाई थी चुनाव आयोग की ताकत, कहा-मैं नेताओं को नाश्ते में खाता हूं
लोकसभा चुनाव सिर पर है। लोकतंत्र के महापर्व के आयोजन की पहाड़ जैसी जिम्मेदारी चुनाव आयोग पर है। और ऐसे वक्त में ही टीएन शेषन याद आने लगे हैं।
TN Seshan: टीएन शेषन ऐसी शख्सियत रहे जिन्होंने रसूखदारों को भी नहीं बख्शा। जिम्मेदारी ऐसी निभाई की इलेक्शन कमीशन क्या होता है, क्या राइट्स होते हैं ये सुर्खियों में छा गया! तिरुनेल्लई नारायण अय्यर शेषन पूरा नाम था टीएन शेषन का। जो एक बहुचर्चित एडमिनिस्ट्रेटर थे और इमानदार शख्सियत के मालिक। ऐसे चुनाव आयुक्त जिनसे पक्ष हो चाहें विपक्ष का नेता वो कांपता था। 1990 से 1996 तक भारत के मुख्य चुनाव आयुक्त रहे। 1990 में जिम्मेदारी संभालने के बाद एक इंटरव्यूह में सवाल का जवाब देते हुए अंग्रेजी में कहा था आई ईट पॉलिटिशियन इन ब्रेकफास्ट मतलब मैं नाश्ते में राजनीतिज्ञों को खाता हूं।
शेषन से जुड़े कई किस्से हैं। एक ऐसे अफसर जो समय के पाबंद थे, सफाई पसंद भी! जैसे उन्होंने चुनाव में फैले भ्रष्ट रवैए को साफ करने के लिए किया। तभी उनके कार्यकाल को चुनाव आयोग का स्वर्णिम काल कहा जाता है। शीर्ष अदालत भी उनका लोहा मानता है। 2022 में तो कोर्ट ने अपने एक ऑब्जर्वेशन में कहा भी था - ‘‘अनेक मुख्य निर्वाचन आयुक्त हुए हैं, लेकिन टीएन शेषन एक ही हुए हैं।
सबसे सख्त, पीएम हो- मंत्री हो सबको दिखाया आईना
बतौर चुनाव आयुक्त शेषन ने अपनी पावर का बखूबी और सही प्रयोग किया। 12 दिसम्बर 1990 से लेकर 11 दिसम्बर 1996 तक के कार्यकाल में किसी को नहीं बख्शा। चाहें वो सरकार में हो या विपक्ष में। उन्होंने शीर्ष नेताओं को भी नाकों चने चबवा दिए। इनमें हिमाचल प्रदेश के तत्कालीन राज्यपाल गुलशेर अहमद, राजस्थान के तत्कालीन राज्यपाल बलिराम भगत, कल्पनाथ राय और यहां तक की प्रधानमंत्री नरसिंहा राव तक का नाम शामिल है।
और प्रणब मुखर्जी अपने पद से गए!
शेषन जिद्दी भी थे और धुन के पक्के भी। चुनावी प्रक्रिया में धांधली बर्दाश्त नहीं थी। लंबे समय से फर्जी वोटरों को रोकने की गुहार सरकार से लगाते रहे। लेकिन खर्चे का रोना रो उनकी कही को टाला जाता रहा। जिद पर अड़े शेषन कहां हार मानने वाले थे। शेषन ने कहा था- अगर मतदाता पहचान पत्र नहीं बनाए, तो देश में कोई चुनाव नहीं होगा। अड़े रहे कि अगर सरकार फोटो वाले मतदान पहचान पत्र लाने में देर करती रहेगी तो वो लोक प्रतिनिधित्व अधिनियम के नियम 37 को लगाएंगे। जिसमें चुनावों की तारीख आगे बढ़ाने या फिर कैंसिल कराने की भी बात थी। इसके बाद 1993 में देश में वोटर आईडी की शुरुआत हुई। वहीं 2 अगस्त, 1993 को टीएन शेषन ने एक 17 पेज का आदेश जारी कर प्रणब मुखर्जी की फजीहत करा दी। प्रणब दा मंत्री थे लेकिन किसी भी सदन के सदस्य नहीं। पश्चिम बंगाल से राज्यसभा के लिए चुने जाने का रास्ता साफ था। लेकिन शेषन के 17 पेज वाले आदेश ने सबके दांत खट्टे कर दिए। उन्होंने कह दिया जब तक सरकार चुनाव आयोग की शक्तियों को मान्यता नहीं देती, तब तक देश में कोई चुनाव नहीं कराया जाएगा। लिखा- चुनाव आयोग ने तय किया है कि उसके नियंत्रण में होने वाला हर चुनाव जिसमें दो साल पर होने वाले राज्यसभा चुनाव, लोकसभा और विधानसभा के उपचुनाव जिनके कराने की घोषणा की जा चुकी है, अगले आदेश तक स्थगित रहेंगे। वो चुनाव नहीं हो पाए नतीजतन प्रणब मुखर्जी का मंत्री पद जाता रहा।
लालू बोले- शेषनवा की भैंसिया...हेला देंगे
1995 का चुनाव बिहार में ऐतिहासिक रहा। इससे पहले राज्य में बूथ कैप्चरिंग एक रिवायत से बन गई थी। लालू प्रसाद को शेषन की सख्ती रास नहीं आ रही थी। किसी भी कोताही पर तुरंत एक्शन लिया जा रहा था। आयोग की ओर से फरमान जारी कर बिहार में फजीहत हो रही थी। ऐसे समय में अपने डेयली प्रेस मीट में शेषन को खूब खरी खोटी सुनाते थे। कभी पागल सांड कहते तो कभी कुछ और। उनका एक बयान सुर्खियों में रहा। लालू ने कहा था- शेषनवा को भैंसिया पे चढ़ाकर के गंगाजी में हेला देंगे। उस वक्त बिहार में चार चरणों में चुनाव हुए और चार बार तारीखें बदली गईं। सबसे लंबे चुनाव हुए। गड़बड़ी पर लगाम लगी और निष्पक्ष चुनाव कराने वाले शेषन हीरो बन गए।
2019 में शेषन का निधन हो गया। उनके दुनिया से रुखसत होने के बाद आत्मकथा थ्रू द ब्रोकन ग्लास का प्रकाशन हुआ। इसमें सीईसी दौर की कई बातों की रोचक दास्तानें हैं। उनके निर्णय, आजमाइशें और सफाई पसंदी के किस्से हैं।
Published By : Kiran Rai
पब्लिश्ड 10 April 2024 at 14:11 IST