अपडेटेड 28 February 2024 at 16:58 IST

नाम नहीं बताती थी महिलाएं, 17 दिन वोटिंग और 4 महीने चुनाव प्रक्रिया; ऐसे हुआ आजाद भारत का पहला चुनाव

First Election in India : 1951 में महिलाएं अजनबियों को अपना नाम बताने से कतराती थीं। करीब 20 से 80 लाख महिलाओं ने अपने असली नाम की जानकारी नहीं दी थी।

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अक्टूबर, 1951 भारत के पहले मुख्य चुनाव आयुक्त सुकुमार सेन और आयोग के सचिव श्री पी.एस. सुब्रमण्यम मतपेटियों की जांच करते हुए | Image: PIB

India's First General Election : इस साल 18वीं लोकसभा के लिए अप्रैल और मई 2024 तक चुनाव होने की उम्मीद है। आम चुनाव की तैयारी में चुनाव आयोग जोर-शोर से जुटा हुआ है, साथ ही सभी सियासी पार्टियां भी चुनाव की प्लानिंग को लेकर जुटी हैं। भारत जैसे बड़े देश में लोकतांत्रिक तरीके से चुनाव कराना बड़ी चुनौती है। आजाद भारत में पहला आम चुनाव 1951-52 में हुआ है। उस वक्त सफल चुनाव कराना ही सबसे बड़ी चुनौती थी।

भारत की आजादी के बाद भारत निर्वाचन आयोग (Election Commission of India) ने पहला लोकसभा चुनाव 489 सीटों पर कराया था। चुनाव आयोग को बने बमुश्किल एक ही साल हुआ था। लिहाजा आयोग के सामने तैयारियों के लिए बहुत कम समय था और सामने पहाड़ जैसी कई चुनौतियां थीं। पहले लोकसभा चुनाव में 17 करोड़ 30 लाख मतदाताओं ने 1,874 उम्मीदवारों में से अपने प्रतिनिधियों का चयन किया था। साल 1951-52 में हुआ यह चुनाव दुनिया में हुई सबसे बड़ी लोकतांत्रिक प्रक्रिया थी।

अपना नाम नहीं बताती थी महिलाएं

चुनाव आयोग द्वारा प्रकाशित 'जनरल इलेक्शंस 2019: एन एटलस' के अनुसार, पहले चुनाव की प्रक्रिया 25 अक्टूबर, 1951 को शुरू हुई और यह चार महीने तक चली। इस दौरान 17 दिन मतदान हुआ था। यह प्रक्रिया शुरू करने से पहले मतदाता सूची तैयार करते समय आयोग ने पाया कि कुछ राज्यों में बड़ी संख्या में महिला मतदाताओं का पंजीकरण उनके अपने नाम से नहीं हुआ है, बल्कि उनके परिवार के पुरुष सदस्यों के साथ उनके संबंधों के विवरण के आधार पर किया गया था। उदहारण के लिए- महिलाओं का नाम मतदाता सूची में उनके पत्नी या पिता के नाम से था।

जनरल इलेक्शंस 2019: एन एटलस

बढ़ाई गई चुनाव की अवधि

महिलाओं के अपना नाम ना बताने का बड़ा कारण ये था कि स्थानीय प्रचलन के अनुसार, महिलाएं अजनबियों को अपना नाम बताने से कतराती थीं। उस समय लोगों में जागरूकता बढ़ाई गई और मतदाताओं का असल नाम जोड़ने के लिए चुनाव कराने की अवधि को विशेष रूप से बढ़ाया गया। रिपोर्ट में कहा गया, 

'देश में कुल लगभग 8 करोड़ महिला मतदाताओं में से लगभग 20 से 80 लाख महिलाओं ने अपने असल नाम की जानकारी नहीं दी थी। जिसके कारण उनका नाम मतदाता सूची से हटाना पड़ा।

ऐसे सभी मामले बिहार, उत्तर प्रदेश, मध्य भारत, राजस्थान और विंध्य प्रदेश राज्यों में सामने आए थे।' मतदाता का नाम उसकी पहचान का एक अनिवार्य हिस्सा था, इसलिए इसे मतदाता सूची में शामिल किया जाना जरूरी था।

दुर्गम इलाकों में तक पहुंचने की चुनौतियां

पहले आम चुनाव में पूरे देश में 1,96,084 मतदान केंद्र बनाए किए गए थे। मतदान की प्रक्रिया बर्फबारी के मौसम से पहले हिमाचल प्रदेश से शुरू की गई थी। मतदान कर्मियों के सामने दुर्गम इलाकों में तक पहुंचने की चुनौतियां थीं। इसमें विशाल रेगिस्तानी क्षेत्र थे, जहां सड़कें नहीं थीं और संचार सुविधाओं का अभाव था। जोधपुर और जैसलमेर जैसे इलाकों में बड़ी संख्या में ऊंटों का इस्तेमाल किया गया था।

पश्चिमी देशों के आलोचकों समेत ऐसे कई लोग थे, जिन्हें लगा था कि भारत जैसे देश में पहला चुनाव कराना असफल प्रयोग साबित होगा। ये वो वक्त था जब भारत में करीब 84 प्रतिशत लोग अपढ़ थे। आलोचकों का कहना था कि अपढ़ लोग लोकतंत्र की प्रक्रिया में कैसे भाग ले सकते हैं और उनका मानना था कि हम असफल रहेंगे। अपढ़ता के अलावा भारत में गरीबी, सामाजिक विभाजन और बंटवारे के बाद सांप्रदायिक विभाजन की भी दिक्कत थी, लेकिन हमने पहले ही चुनाव में हमारे असफल रहने की आशंकाओं को गलत साबित कर दिया था।

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Published By : Sagar Singh

पब्लिश्ड 28 February 2024 at 16:13 IST