अपडेटेड 15 November 2025 at 08:48 IST
मनोज, रवि किशन और निरहुआ...पहली बार 'वोट की जंग' में भोजपुरी सितारों को मिलती है हार; क्या खेसारी की भी चमकेगी राजनीतिक किस्मत?
भोजपुरी सिनेमा के सितारों की चमक जब राजनीति के अखाड़े में उतरती है, तो उनकी लोकप्रियता हमेशा जीत की गारंटी साबित नहीं होती।
भोजपुरी सिनेमा के सितारों की चमक जब राजनीति के अखाड़े में उतरती है, तो उनकी लोकप्रियता हमेशा जीत की गारंटी साबित नहीं होती। बिहार विधानसभा चुनाव 2025 के नतीजों ने इस हकीकत को दोबारा उजागर कर दिया। खेसारी लाल यादव, रितेश पांडे जैसे सुपरस्टार मतदाताओं को प्रभावित नहीं कर पाए, जबकि पवन सिंह की पत्नी ज्योति सिंह भी तीसरे पायदान पर सिमट गईं।
रील लाइफ के ये हीरो रियल लाइफ की पहली राजनीतिक परीक्षा में चूक गए, लेकिन उनका यह सफर राजनीति में संघर्ष और धैर्य की नई कहानी भी कहता है। मनोज तिवारी, रवि किशन जैसे भोजपुरी इंडस्ट्री के कई स्टार्स ने अपना राजनीतिक सफर हार से शुरू किया, फिर भी वे वापसी कर चमके। आइए, जानते हैं उन 'हीरोज' की कहानी, जिन्होंने पहली बार वोट की जंग लड़ी और हार गए।
खेसारी लाल यादव: पहली पारी में हार, लेकिन सीख बड़ी
भोजपुरी के सुपरस्टार खेसारी लाल यादव (असल नाम शत्रुघ्न यादव) ने आरजेडी के टिकट पर छपरा से चुनाव लड़ा। स्टारडम के बावजूद वे बीजेपी की छोटी कुमारी से करीब 7600 वोटों से हार गए। उनकी हार ने साबित कर दिया कि पर्दे की लोकप्रियता वोटों में तब्दील नहीं होती। लेकिन यह शुरुआत है-हर नए नेता की तरह खेसारी भी राजनीति के सबक अभी सीख रहे हैं।
मनोज तिवारी: हार से जीत तक का सफर
मनोज तिवारी की कहानी इस संघर्ष की मिसाल है। 2009 में उन्होंने समाजवादी पार्टी से गोरखपुर लोकसभा सीट पर चुनाव लड़ा, जहां योगी आदित्यनाथ से हार झेलनी पड़ी। लेकिन उन्होंने हार को ठहराव नहीं बनने दिया। 2013 में बीजेपी से जुड़कर 2014 में दिल्ली की उत्तर-पूर्व सीट से जीत दर्ज की। लगातार तीन बार से वह इसी सीट से सांसद चुने गए हैं और अब दिल्ली में भाजपा का प्रमुख चेहरा हैं।
रवि किशन: गलत शुरुआत, सही मोड़
रवि किशन ने 2014 में कांग्रेस से राजनीति में कदम रखा और जौनपुर से चुनाव लड़ा, लेकिन असफल रहे। बाद में उन्होंने स्वीकार किया कि कांग्रेस में जाना उनकी “राजनीतिक भूल” थी। 2017 में बीजेपी जॉइन की और 2019 में गोरखपुर से भारी बहुमत से जीत हासिल की। लगातार दो बार जीतकर उन्होंने साबित किया कि गलत शुरुआत भी सही दिशा में मोड़ ले सकती है।
दिनेश लाल यादव “निरहुआ”: हार से हिम्मत तक
‘निरहुआ रिक्शावाला’ फेम दिनेश लाल यादव ने 2019 में आजमगढ़ से बीजेपी उम्मीदवार के रूप में मैदान संभाला, पर अखिलेश यादव के खिलाफ हार गए। उन्होंने हार को चुनौती में बदला और 2022 के उपचुनाव में उसी सीट से जीत हासिल की। हालांकि 2024 में फिर पराजय मिली, लेकिन उनकी सक्रियता बताती है कि राजनीति में निरंतरता ही असली ताकत है।
पवन सिंह: विवादों से वापसी तक
‘पावर स्टार’ पवन सिंह की राजनीति भी उतार-चढ़ाव से भरी रही। 2024 में बीजेपी ने उन्हें आसनसोल से टिकट दिया, जिसे उन्होंने बाद में वापस ले लिया और बिहार की काराकाट सीट से निर्दलीय लड़े पर हार गए। पार्टी विरोधी गतिविधियों के आरोप में उन्हें मई 2025 में निष्कासित भी किया गया, मगर अक्टूबर 2025 में अमित शाह की मौजूदगी में उन्होंने बीजेपी में वापसी की। यह वापसी उनके राजनीतिक करियर का टर्निंग पॉइंट मानी जा रही है।
रितेश पांडे और जन सुराज का फ्लॉप शो
पूर्व चुनाव रणनीतिकार प्रशांत किशोर की जन सुराज पार्टी 243 सीटों में से एक भी नहीं जीत पाई। इसी पार्टी से भोजपुरी गायक रितेश पांडे ने करगहर से किस्मत आजमाई लेकिन मात्र 7.45 प्रतिशत वोट पाकर बाहर हो गए। उनके लिए यह राजनीतिक पारी की कठोर शुरुआत थी।
स्टारडम बनाम राजनीति: दो दुनियाओं का फर्क
भोजपुरी सितारे अपनी फिल्मों और गीतों से आम जनता के दिलों में जगह बना चुके हैं, लेकिन राजनीति की जमीन अलग है। यहां लोकप्रियता से ज्यादा मायने रखता है स्थानीय मुद्दों पर पकड़, संगठन की ताकत और जमीनी नेटवर्क। यही वजह है कि ज्यादातर स्टार्स की राजनीतिक यात्रा एक ही पैटर्न में चलती है- पहली हार, फिर रणनीति में सुधार और अंततः सफलता।
Published By : Ankur Shrivastava
पब्लिश्ड 15 November 2025 at 08:48 IST