अपडेटेड 13 April 2023 at 10:31 IST
2400 साल पहले पाटलिपुत्र से सैकड़ों मील दूर कर्नाटक में चक्रवर्ती सम्राट चंद्रगुप्त मौर्य ने किया था संथारा
Chandragupta Maurya ने आज से करीब 2400 पहले पाटलिपुत्र छोड़ कर्नाटक के श्रवणबेलगोला में जाकर जैन दीक्षा ली और संथारा के जरिए अपने प्राण त्यागे थे।
Chandragupta Maurya: भारत के इतिहास में अनेकों महान योद्धा हुए हैं। उत्तर से लेकर दक्षिण तक भारत की भूमि पर कई वीर योद्धाओं ने जन्म लिया है। चक्रवर्ती सम्राट चंद्रगुप्त मौर्य का नाम इतिहास के पन्नों में स्वर्णिम अक्षरों से दर्ज है। उनकी बहादुरी के तो कई किस्से प्रचलित हैं, लेकिन उनकी वैराग्य गाथा के बारे में बहुत कम लोग जानते हैं।
चंद्रगुप्त मौर्य को मौर्य साम्राज्य का संस्थापक माना जाता है। नंदा और मुरा के यहां पाटलिपुत्र में करीब 340 ई.पू. में उनका जन्म हुआ था। मुरा से ही मौर्य शब्द की उत्पत्ति हुई है। चंद्रगुप्त मौर्य ने 25 वर्षों तक मगध पर शासन किया। अपने शासन काल के दौरान उन्होंने बड़े पैमाने पर राज्य का विस्तार किया।
सिकंदर के सेनापति को बनाया था बंधक
चंद्रगुप्त के समय सिंकदर का भी बोलबाला था। सम्राट चक्रवर्ती चंद्रगुप्त ने सिकंदर के सेनापति सेल्कुकस को दो बार बंधक बनाया था, लेकिन दोनों बार उसे छोड़ दिया। इतिहासकारों के मुताबिक चंद्रगुप्त मौर्य ने तीन शादियां की थी। उनकी पत्नियों के नाम दुर्धरा, हेलेना और चंद्र नंदिनी था। दुर्धरा से उनके घर में बिंदुसार का जन्म हुआ था, जो सम्राट अशोक के पिता भी थे।
चंद्रगुप्त को मिला भद्रबाहु का साथ
चंद्रगुप्त मौर्य के शासनकाल में जैन धर्म काफी तेजी से फैल रहा था। अंतिम श्रुतकेवली भद्रबाहु को उन्होंने अपना गुरु स्वीकार किया। चंद्रगुप्त का झुकाव जैन धर्म की ओर हो रहा था। चक्रवर्ती सम्राट होने के बावजूद उन्हें संसार से वैराग्य होने लगा था। भद्रबाहु ने उस समय अपने ज्ञान से जाना का मगध में 12 साल का भयंकर अकाल पड़ने वाला है। इसके बाद भद्रबाहु अपने 12 हजार शिष्यों के साथ दक्षिण की ओर आ गए।
चंद्रगुप्त ने ली थी जैन दीक्षा
चंद्रगुप्त मौर्य भी भद्रबाहु के साथ कर्नाटक आए। कर्नाटक के हासन जिले में श्रवणबेलगोला नाम का एक नगर है, जहां पर चंद्रगुप्त ने भद्रबाहु से जैन दीक्षा अंगीकार की। उन्होंने अपने जीवन का अंतिम समय श्रवणबेलगोला की चंद्रगिरी हिल पर बिताया। इस पहाड़ी का नाम चंद्रगुप्त के नाम पर ही रखा गया है। उन्होंने कई वर्षों तक कठोर साधना की और अपने गुरु भद्रबाहु की भी सेवा की।
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संथारा ग्रहण कर त्यागे थे प्राण
चंद्रगिरी पर्वत पर आज भी वह गुफा मौजूद है, जहां भद्रबाहु और चंद्रगुप्त मौर्य रहा करते थे। उनके चरण चिन्ह भी गुफा में बने हुए हैं। जैन धर्म के अनुयायियों के लिए यह एक पवित्र तीर्थ स्थान है। यहां पर एक बसदी भी बनी हुई है, जिसे चंद्रगुप्त बसदी के नाम से जाना जाता है। अंतिम समय में चंद्रुगप्त ने संथारा (संलेखना) ले लिया और सभी प्रकार के अन्न-जल का त्याग कर अपने प्राण त्यागे थे।
Published By : Mohit Jain
पब्लिश्ड 13 April 2023 at 10:26 IST