अपडेटेड 5 November 2025 at 21:47 IST
अजगर का शौक, हमले के वक्त सिर पर सोने का मुकुट...अनंत सिंह की कुंडली में कितने क्राइम? कभी बन गए थे साधु फिर बदले की आग ने बनाया 'मोकामा का डॉन'
बिहार की राजनीति में बाहुबली नेताओं का असर कोई नई बात नहीं है। लेकिन जब चर्चा अनंत सिंह की होती है, तो बात सिर्फ राजनीति तक सीमित नहीं रहती, बल्कि अपराध और लोककथा के बीच झूलने लगती है।
Profile Of Anant Singh: बिहार की सियासत में एक बार फिर गोलियों की गूंज सुनाई दी है। मोकामा में जनसुराज समर्थक दुलारचंद यादव की निर्मम हत्या ने पूरे प्रदेश को झकझोर दिया। बताया जाता है, बसावन चक इलाके में चुनाव प्रचार के दौरान पहले उन्हें पैर में गोली मारी गई और फिर गाड़ी चढ़ाकर कुचल दिया गया। दुलारचंद, जो कभी इलाके में दहशत का नाम थे, हाल के वर्षों में जनसुराज से जुड़कर राजनीतिक रास्ते पर लौटे थे। यह फैसला आखिरकार उनके लिए जानलेवा साबित हुआ।
पीड़ित के परिजनों ने आरोप लगाया है कि इस वारदात के पीछे बाहुबली नेता और जेडीयू प्रत्याशी अनंत सिंह का हाथ है। दुलारचंद के पोते रविरंजन का दावा है, “गोली अनंत सिंह ने खुद चलाई और फिर गाड़ी पैर पर चढ़ा दी।” पुलिस ने शिकायत दर्ज कर ली है और मामले की तफ्तीश जारी है। शनिवार की देर रात अनंत सिंह को गिरफ्तार कर लिया गया और आज मजिस्ट्रेट के सामने उनकी पेशी होनी है।
"छोटे सरकार" की कहानी: डर, रसूख और सत्ता का गठजोड़
बिहार की राजनीति में बाहुबली नेताओं का असर कोई नई बात नहीं है। लेकिन जब चर्चा अनंत सिंह की होती है, तो बात सिर्फ राजनीति तक सीमित नहीं रहती, बल्कि अपराध और लोककथा के बीच झूलने लगती है। “छोटे सरकार”, “मोकामा के डॉन” जैसे नाम वर्षों से उनके साथ जुड़े हैं। पैदाइश पटना जिले के लदमा गांव की, और शुरुआत बेहद कम उम्र से अपराध की। कहा जाता है, पहली बार वे महज 9 साल की उम्र में जेल गए थे। उनके बड़े भाई दिलीप सिंह खुद भी बड़े राजनीतिक चेहरे थे और लालू प्रसाद यादव की सरकार में मंत्री रह चुके थे।
80 के दशक में दिलीप सिंह सत्ता के लिए बूथ कब्जाने और सियासी दबदबे के प्रतीक बने। उनके साए में अनंत सिंह का उदय हुआ। जल्द ही वह बाढ़ और मोकामा इलाकों में भूमिहार समुदाय के प्रतीक बन गए। हैट और चश्मा पहनने का शौक, अजगर पालने का जुनून और जनता के बीच रॉबिनहुड जैसी छवि ही उनकी पहचान है।
राजनीति में बाहुबली का प्रवेश
1990 के दशक के उत्तरार्ध में जब नीतीश कुमार ने बिहार की राजनीति में अपनी पैठ बनानी शुरू की, तब उन्हें अपने प्रभाव क्षेत्र को मजबूत करने के लिए स्थानीय प्रभावशाली चेहरों की जरूरत थी। इसी जगह अनंत सिंह नीतीश के करीबी सहयोगी बने। 2005 के विधानसभा चुनाव में एनडीए ने उन्हें मोकामा से टिकट दिया, और उन्होंने जीत हासिल की। गरीबों में लोकप्रियता बढ़ाने के लिए वो तीज-त्योहारों पर कपड़े और भोजन वितरित करते, मुस्लिम समुदाय के साथ इफ्तार कार्यक्रमों में हिस्सा लेते। इस रणनीति ने “लोगों के मसीहा” के रूप में उनकी छवि मजबूत की, भले ही आपराधिक मामलों की लंबी सूची उनके पीछे चलती रही।
विवादों और अपराधों से भरा सफर
अनंत सिंह का नाम बार-बार हिंसा, हत्या और हथियार तस्करी जैसे गंभीर मामलों में आया है। 2004 में मोकामा स्थित उनके घर पर हुई मुठभेड़ में एक जवान शहीद हुआ था। 2007 में बलात्कार और हत्या के मामले में उनका नाम उछला। 2015 में अगवा किए गए युवकों में से एक की हत्या के बाद फिर सुर्खियों में रहे। 2019 में उनके घर से एके-47 राइफल और हैंड ग्रेनेड बरामद हुए, जिसके बाद उन पर यूएपीए के तहत केस दर्ज हुआ।
फिर भी, हर बार की तरह वे राजनीति और जनसंपर्क की ढाल के पीछे खुद को सुरक्षित रखने में सफल रहे। कहा जाता है कि एक दौर में अनंत सिंह ने अपराध की दुनिया छोड़ साधु जीवन अपनाने का प्रयास किया था। वे कुछ समय के लिए अयोध्या और हरिद्वार में रहे। लेकिन उनके बड़े भाई की हत्या ने उन्हें नए सिरे से बदले की राह पर ला खड़ा किया। प्रतिशोध के उस हिंसक क्षण ने “छोटे सरकार” की दहशत भरी छवि को जन्म दिया। मौजूदा समय के वरिष्ठ पत्रकारों की मानें तो अनंत सिंह जब भी किसी पर हमला करने जाते तो सोने का मुकुट पहनकर जाते थे।
बिहार की राजनीति की स्थायी त्रासदी
2025 के चुनावी संग्राम में मोकामा में हुए इस ताजा खून-खराबे ने एक बार फिर पुराने सवाल को जिंदा कर दिया है — क्या बिहार की राजनीति कभी बाहुबली संस्कृति से मुक्त हो पाएगी? हर दौर में सत्ता ने ऐसे चेहरों को इस्तेमाल किया और फिर जब उनका बोझ बढ़ गया, तो किनारे कर दिया। लेकिन जनता के बीच उनमें अभी भी भय और आकर्षण दोनों का अजीब मिश्रण है। मोकामा की गलियों में आज भी लोग कहते हैं — “कानून का राज चाहे जो हो, यहां अब भी ‘छोटे सरकार’ का नाम असर रखता है।”
Published By : Ankur Shrivastava
पब्लिश्ड 2 November 2025 at 14:57 IST