अपडेटेड 5 November 2025 at 20:49 IST

दीवारों से झांकती बंदूक की नाल, खून से भीगती मिट्टी और वजह सिर्फ एक... लंबी है मोकामा के अनंत सिंह के जानी दुश्मनों की फेहरिस्‍त

अनंत सिंह अपनी ताकत और धांक ऐसी जमाई कि मोकामा उसके नाम से पहचाना जाने लगा। उसके पास सबकुछ था लेकिन दुश्मनों की फौज ने कभी उसे सुकून से रहने नहीं दिया।

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दीवारों से झांकती बंदूक की नाल, खून से भीगती मिट्टी और वजह सिर्फ एक... लंबी है मोकामा के अनंत सिंह के जानी दुश्मनों की फेहरिस्‍त | Image: X/Facebook

गंगा के किनारे बसा बिहार का मोकामा, जहां कभी इंजन की सीटी और दलहन की खुशबू गूंजती थी। मगर अब वही इलाका बंदूकों की गूंज से कांपता है। यह बानगी है उस धरती की, जिसने न जाने कितनी बार बंदूक की नाल से उठता धुआं देखा और खून से भीगती मिट्टी की चुप्पी सुनी। दरअसल, यह कहानी है सत्ता और बदले की जहां राजनीति, डर और अपराध एक-दूसरे से इस कदर गले मिले हैं कि कोई फर्क ही नहीं रह गया।

कहानी शुरू होती है मोकामा के लदमा गांव से। यहां का एक लड़का, जिसका नाम है अनंत सिंह। कहते हैं, जिस उम्र में बच्चे स्कूल की कापियों में सपने लिखते हैं, उस उम्र में उसने अपनी तकदीर में बारूद लिख ली थी। पहली हत्या नाबालिग उम्र में हुई, और फिर जैसे हिंसा उसका पेशा बन गया। 90 के दशक तक उसके खिलाफ हत्या, अपहरण, वसूली और राजनैतिक षड्यंत्र के 38 से ज्‍यादा केस दर्ज थे।

लोग उससे डरते थे। लेकिन कुछ लोग उसे रॉबिन हुड मानते थे। साल 2005 में उसने राजनीति में एट्री की और माननीय (विधायक) बन गया। जनता दल यूनाइटेड ने टिकट दिया, और ‘छोटे सरकार’ ने अपनी बादशाहत घोषित की। वो जेल से भी चुनाव जीता, और जब वो सलाखों के पीछे था तो पत्नी नीलम देवी ने मोर्चा संभाला। अनंत सिंह अपनी ताकत और धांक ऐसी जमाई कि मोकामा उसके नाम से पहचाना जाने लगा। उसके पास सबकुछ था लेकिन दुश्मनों की फौज ने कभी उसे सुकून से रहने नहीं दिया। तो आइए आज आपको अनंत सिंह के दुश्‍मनों की पूरी लिस्‍ट दिखाते हैं।

दुश्मन नंबर 1 - सूरजभान सिंह उर्फ दादा

मोकामा की सड़कों पर जब “दादा आ गए” की खबर फैलती थी, लोग दरवाजा बंद कर लेते थे। गरीबी से निकला सूरजभान सिंह जल्द ही रेलवे के ठेकों पर राज करने वाला डॉन बन गया। उसके उपर 26 आपराधिक मुकदमे दर्ज हैं। 2000 में जब उसने अनंत के भाई दिलीप सिंह उर्फ बड़े सरकार को हराया तो वो सिर्फ एक सीट की जीत नहीं, बल्‍कि एक जंग की अदावत थी। बाद में सूरजभान सिंह सांसद बना, उसकी पत्नी वीणा देवी भी संसद पहुंचीं। मगर राजनीति सिर्फ एक जरिया था। असली खेल था टाल की जमीन पर कब्जे का। इसी को लेकर अनंत और सूरजभान टकराए, क्योंकि दोनों का मकसद था मोकामा पर राज।

दुश्मन नंबर 2 - राजन तिवारी

राजन तिवारी, वो नाम जिसे सुनकर पुलिस की सांसें थम जाती थीं। यूपी से बिहार की सरहद तक उसका सिंडिकेट फैला हुआ था। वो कुख्यात श्रीप्रकाश शुक्ला गैंग से जुड़ा, पर बिहार में अपनी पहचान अलग बनाई। गोरखपुर की फायरिंग से लेकर मोकामा के टाल तक हर जगह उसका असर था। उसके खिलाफ गैंगस्टर एक्ट के तहत 1998 से नॉन-बेलेबल वारंट है, और वह यूपी-बिहार के 61 सबसे खतरनाक माफियाओं की लिस्ट में शामिल है। अनंत सिंह से उसकी दुश्मनी शुरू हुई जमीन के विवाद से। राजन तिवारी की दुश्मनी अनंत से जमीन के बंटवारे पर शुरू हुई थी, जो आज भी जारी है। वह सीमा पार स्मगलिंग और वसूली के मामलों का सरगना है।

दुश्मन नंबर 3 - सोनू-मोनू

कहते हैं सबसे बड़ा खतरा बाहर से नहीं, अंदर से आता है। सोनू और मोनू एक वक्‍त अनंत सिंह के साये की तरह साथ चलते थे। बाद में उन्‍होंने ही उसके खिलाफ हथियार उठा लिए। पहले तो ट्रेन लूट, फिर इलाके पर कब्जा, हर काम में छोटे सरकार का दम दिखाते रहे। मगर 2015 में अनंत की गिरफ्तारी के बाद, दोनों भाइयों ने बगावत कर दी। उन्‍होंने मुख्तार अंसारी गैंग से हाथ मिला लिया। साल 2025 में नौरंगा गांव में हुई 70 राउंड फायरिंग, उसी बगावत की गूंज थी। कहते हैं, गोली चली तो गांव की हवा तक सुन्न हो गई थी। उसका एक वीडियो भी आया था जिसमें सोनू कहता है “अनंत का दौर अब खत्म।” मोनू तो गिरफ्तार हो गया, मगर सोनू अब भी टाल की गलियों में अंनत की दुश्‍मनी लिए घूमता है।

दुश्मन नंबर 4 - टाल का गुट

कभी टाल दलहन के लिए जाना जाता था, अब यह बिहार की सबसे खतरनाक जमीनी जंग का प्रतीक है। 1980 के दशक से ही यह इलाका बाहुबली राजनीति का गढ़ रहा है। यहां जात, जमीन और जुर्म का खेल एक-दूसरे में इतना उलझा है कि हर हत्या एक संदेश देती है। टाल का गुट 1980 के दशक से सक्रिय है, जो जमीन हड़पने, दलहन की खेती पर कब्जा और वसूली के लिए कुख्यात है। यह गुट भूमिहार और यादव समुदायों के बीच जातीय जंग का प्रतीक है। अनंत सिंह ने यहां अपना साम्राज्य फैलाया, लेकिन टाल के गुट ने हमेशा विद्रोह किया। 
 

दुलारचंद यादव जैसे स्थानीय बाहुबली इसी गुट से जुड़े थे। गुट के सरगनाओं ने रेलवे यार्ड से लेकर फैक्टरियों तक पर कब्जा किया है। अनंत के खिलाफ उनकी दुश्मनी जमीन के बंटवारे से शुरू हुई थी। आज भी टाल की गलियां रंजिशों से भरी हैं। अब मोकामा की मिट्टी सिर्फ फसल से नहीं, दुश्‍मनी और डर से भी सींची जाती है। यहां हर दीवार, हर मोड़ एक कहानी कहता है। जिसमें सत्ता से ज्यादा ताकतवर चीज है- 'बदला और सिर्फ बदला'।

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Published By : Ankur Shrivastava

पब्लिश्ड 5 November 2025 at 20:49 IST